
1. हाईकोर्ट ने खारिज की लोकपाल की याचिका
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मनरेगा लोकपाल और जनसूचना अधिकारी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें लोकपाल ने खुद को ‘न्यायालय’ बताते हुए आरटीआई अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी देने से छूट का दावा किया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकपाल आरटीआई के दायरे में आता है।
2. आरटीआई के तहत लोकपाल को देनी होगी जानकारी
राज्य सूचना आयुक्त के आदेश को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि मनरेगा लोकपाल को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध करानी होगी। सूचना आयुक्त ने लोकपाल और जनसूचना अधिकारी को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे द्वारा मांगी गई जानकारी 30 दिनों के भीतर प्रदान करने का निर्देश दिया था।
3. लोकपाल का दावा: ‘हम न्यायालय हैं, आरटीआई लागू नहीं‘
लोकपाल और जनसूचना अधिकारी ने तर्क दिया था कि मनरेगा अधिनियम के तहत उन्हें “न्यायालय” का दर्जा प्राप्त है और आरटीआई की धारा 8 के तहत उन्हें जानकारी देने से छूट है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत लोकपाल को कोई विशेष छूट नहीं है।
4. बीरबल रात्रे ने मांगी थी शिकायतों की जानकारी
बीरबल रात्रे ने 19 अगस्त 2015 को आरटीआई के तहत लोकपाल से 1 जनवरी 2015 से अब तक दर्ज शिकायतों की प्रतियां, जांच रिपोर्ट, नोटशीट और लोकपाल द्वारा दर्ज किए गए बयानों की जानकारी मांगी थी। इस पर लोकपाल ने जवाब दिया था कि वह इन सूचनाओं को गुप्त रखने के लिए बाध्य है।
5. सूचना आयुक्त ने लोकपाल को दिया था आदेश
बीरबल रात्रे की पहली अपील पर जिला पंचायत सीईओ ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद उन्होंने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष दूसरी अपील की। राज्य सूचना आयुक्त ने 30 अगस्त 2016 को लोकपाल को निर्देश दिया था कि वह 30 दिनों के भीतर मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराए।
6. लोकपाल को करना होगा आरटीआई का पालन
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मनरेगा अधिनियम के तहत लोकपाल की स्थापना वैधानिक है और लोकपाल की कार्यवाही व उससे संबंधित जानकारी आरटीआई के तहत मांगी जा सकती है।
7. हाईकोर्ट का बड़ा संदेश
हाईकोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि मनरेगा लोकपाल, जो मनरेगा अधिनियम के तहत नियुक्त होता है, आरटीआई के दायरे में आएगा। कोर्ट ने कहा कि लोकपाल को आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का पालन करना होगा और मांगी गई जानकारी को देने से इनकार नहीं किया जा सकता।