
सूदखोरों के मकड़जाल में फंसकर कई हंसती खेलती जिंदगियां तबाह हो गईं। कोई इनके 10 प्रतिशत ब्याज वाले कर्ज से उद्यमी बनने का सपना देख रहा था तो कोई बच्चों की पढ़ाई करा रहा था। ऐसा नहीं है कि ये लोग कर्ज चुका नहीं रहे थे, बल्कि लोग कर्ज से कई गुना ब्याज दे चुके थे। लेकिन न जाने कौन सा गणित इन सूदखोरों का है, जो एक बार कर्ज लेने वाला पाई-पाई बेचकर लिया गया मूलधन भी वापस नहीं कर पाता। यह स्थिति शहर से लेकर गांव तक है। हालांकि, पूरे प्रदेश में सूदखोरी प्रतिबंधित है, पुलिस शिकायतों पर कार्रवाई भी करती है लेकिन सूद के इस धंधे में कर्ज लेने वाले भी खामोश रहते हैं। यही वजह है कि यह धंधा हर जगह खूब फलफूल रहा है।
एक कर्ज चुकाने को लेते हैं, दूसरा कर्ज
सूदखोरी के इन धंधेबाजों ने बड़े कायदे से अपना जाल बुना है। पहले कर्ज लिए आदमी को खूब परेशान करते हैं, इसके बाद दूसरा सूदखोर मददगार बनकर आता है और वह ब्याज चुकाने को नया कर्ज दे देता है। उलझन में पड़ा आदमी दूसरा कर्ज लेकर पहले कर्ज का ब्याज चुकाता है। अभी वह सांस भी नहीं ले पाता, तब तक दो कर्जों का ब्याज एक साथ चुकाने का दबाव पड़ना शुरू होता है। अब यहां से उसकी व्यवस्था बिगड़ने लगती है। आय के स्रोत दुकान, खेती और मकान पर नजर गड़ाए सूदखोर वहां अपना कब्जा जमाते हैं, जिससे किस्त टूटनी शुरू होती है। इसके बाद ब्याज का ब्याज ही मूलधन से कई गुना अधिक हो जाता है और आदमी कर्जाें के इस मकड़जाल से बाहर निकलने के बाद मकान, दुकान, जमीन बेचने लगता है। कई बार इसके चक्कर में लोग इतने तनाव में आ जाते हैं कि खुद आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं। लेकिन, सूदखोरों पर कार्रवाई नहीं होती है।
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ब्लैंक चेक,एग्रीमेंट पेपर, ब्लैंक स्टांप पर हस्ताक्षर कराकर हो रहा धंधा
गली-गली में सूदखोरी का धंधा फल-फूल रहा है, लेकिन कोई रजिस्टर्ड साहूकार छोटी रकम ही दे सकता है। बड़ी रकम देना उसको अधिकार नहीं है। नियम के तहत साहूकार प्रतिभूत ऋण यानी कोई वस्तु गिरवी रखकर लिए गए रुपये पर 12 से 14 प्रतिशत वार्षिक ब्याज ही वसूल सकता है। जबकि ब्लैंक चेक, एग्रीमेंट पेपर, ब्लैंक स्टांप पर हस्ताक्षर कराकर ना जाने कितने धंधेबाज सूद पर रुपया देने का काम कर रहे हैं। कहने को तो सूद चक्रवृद्धि ब्याज के अनुसार वसूलते हैं। लेकिन इनकी ब्याज दर वार्षिक या अर्द्धवार्षिक नहीं बल्कि मासिक होती है।