
मुंगेली, छत्तीसगढ़ — एक ओर जहाँ पूरे देश में विश्व पर्यावरण दिवस पर बधाई संदेशों की बाढ़ आई, वहीं मुंगेली शहर की आगर नदी आज भी उसी उपेक्षा और गंदगी की मार झेल रही है। कभी शहर की शान और जीवनदायिनी कही जाने वाली इस नदी का हाल देखना आज किसी दर्दनाक दृश्य से कम नहीं है।

सफाई अभियान के बाद फिर वही गंदगी
कुछ ही दिन पहले शहर में एक विशेष सफाई अभियान चलाया गया था जिसमें नगर पालिका, जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी और सामाजिक संस्थाओं के लोग शामिल हुए। टनों प्लास्टिक कचरा और अन्य अपशिष्ट इस नदी से निकाला गया था। उम्मीद जगी थी कि अब शायद हालात बदलेंगे।

लेकिन आज, पर्यावरण दिवस के दिन जब इस नदी की स्थिति देखी गई, तो वही गंदगी, वही प्लास्टिक और फिर से जलकुंभी का अतिक्रमण हर जगह नज़र आया। यह तस्वीर साफ दर्शाती है कि सफाई केवल एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि निरंतर प्रयास की मांग करती है।
राजनीतिक वादों और जमीनी हकीकत में फर्क
वर्षों से आगर नदी के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के वादे नेताओं और सरकारों द्वारा किए जाते रहे हैं। कभी मास्टर प्लान की घोषणा होती है तो कभी सीवरेज ट्रीटमेंट की बात। लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी इस नदी में शहर की सीधी नालियाँ गिरती हैं, बिना किसी शोधन के।
नदी का जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और पानी अब सड़ांध भरा गंदा दलदल बनता जा रहा है, जिससे मच्छरों का प्रकोप और बीमारियाँ फैलने का खतरा भी बना रहता है।
“आगर नदी को बचाना अब एक आंदोलन बनाना होगा”

स्थानीय लोग कहते हैं:
“अगर अब भी हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह नदी केवल तस्वीरों और कहानियों में रह जाएगी। हमें लगातार सफाई, अपशिष्ट प्रबंधन और जनभागीदारी से इसे पुनर्जीवित करना होगा।”

नदी को बचाने के लिए क्या हो सकते हैं कारगर कदम?
✅ स्थायी समाधान और योजनाएँ
नदी किनारे से सीधे गिरने वाली नालियों पर एसटीपी (Sewage Treatment Plant) लगाना अनिवार्य हो।
नदी के लिए स्थायी सफाई टीम गठित की जाए, जो हर महीने निरीक्षण और सफाई का कार्य करे।
✅ जनभागीदारी और जिम्मेदारी:
स्कूल-कॉलेज स्तर पर नदी संरक्षण जागरूकता अभियान चलाया जाए।
प्लास्टिक के उपयोग और फेंकने पर सख्त जुर्माना लगाया जाए।
✅ प्राकृतिक पुनर्जीवन:
जलकुंभी हटाकर, नदी के किनारों पर स्थानीय पौधों और वृक्षों का रोपण किया जाए।
वर्षाजल संग्रहण प्रणाली से नदी को पुनर्जीवित किया जाए।
आज, पर्यावरण दिवस पर केवल सोशल मीडिया पोस्ट और भाषणों से कुछ नहीं बदलेगा। बदलाव तब आएगा जब हम अपने आस-पास की नदियों, झीलों और जंगलों को वास्तव में सहेजना शुरू करेंगे।
आगर नदी केवल पानी की धारा नहीं, यह मुंगेली की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक पहचान है। इसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

