
बिलासपुर जिले के शांत समझे जाने वाले रतनपुर कस्बे में अब सन्नाटा नहीं, सवाल गूंज रहे हैं। एक स्थानीय पत्रकार द्वारा शराब माफियाओं पर प्रकाशित रिपोर्ट ने न सिर्फ पुलिस महकमे को हिला दिया है, बल्कि एएसआई नरेश गर्ग और पत्रकार के बीच सीधा टकराव खड़ा कर दिया है।
रिपोर्ट छपी, नोटिस पहुंचा — क्या कलम की धार से डर गई सत्ता?
पत्रकार ने अपने लेख में दावा किया कि रतनपुर थाना क्षेत्र में पकड़े गए शराब माफिया कथित तौर पर बीस हजार की डील के बाद छोड़ दिए गए, और चौंकाने वाली बात यह रही कि वही आरोपी दो दिन बाद फिर से गिरफ्तार हुए। इस खुलासे के बाद एएसआई गर्ग ने पत्रकार को कानूनी नोटिस भेजकर खबर के सबूत, पत्रकारिता की डिग्री और पेशेवर योग्यता तक मांगी।
आक्रामक तेवर में पत्रकार: “मैंने सच लिखा है, अब सबूत कप्तान के सामने रखूंगा”
पत्रकार का कहना है कि उनके पास पूरे मामले से जुड़े दस्तावेज़ और गवाह हैं। उन्होंने कहा, “ये खबर नहीं, हकीकत है। अब न्याय की परख कप्तान दरबार में होगी।”


सोशल मीडिया पर तूफान: “सवाल पूछना गुनाह कब से हो गया?”
लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है — क्या अब सच उजागर करने वाले पत्रकारों को अपनी डिग्री दिखाकर ईमानदारी साबित करनी पड़ेगी? क्या सत्ता की ताकत पत्रकारिता की आज़ादी को कुचलने पर आमादा है?
नतीजा? सिर्फ एक सवाल – पत्रकार कटघरे में या सिस्टम?
अब सबकी निगाहें पुलिस कप्तान की ओर हैं, जहां यह तय होगा कि कलम चलेगी या सत्ता का डंडा। रतनपुर की यह लड़ाई अब सिर्फ एक रिपोर्ट की नहीं, लोकतंत्र की आत्मा की परीक्षा बन चुकी है।
“कहानी नहीं, सच्चाई लिखी है” — क्या अब सच बोलने वालों को डराया जाएगा?
यह मामला इस बात का प्रतीक बनता जा रहा है कि जब पत्रकारिता सत्ता से टकराती है, तो या तो बदलाव आता है या सवालों का गला घोंट दिया जाता है। अब देखना ये है — क्या हक़ की आवाज़ दबेगी या गूंजेगी?